आंसुओं को बहुत समझाया तनहाई में आया करो, महिफ़ल मे आकर मेरा मजाक ना बनाया करो ! आँसूं बोले . . . इतने लोग के बीच भी आपको तनहा पाता हूँ, बस इसलिए साथ निभाने चले आता हूँ ! जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया, हम सिख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया ! बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे... पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओं को तन्हाई ! हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से, देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में ! चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं... -- हरिवंशराय बच्चन
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